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अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि च तं नरं न रञ्जयति ॥
(एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन
एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते,क्योंकि अधुरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अंधा बना देता है)

उक्त तथ्य के प्रति सतर्कता का ज्ञापन भगवान भर्तृहरी ने किया था, जिसे सहजता से स्वीकार करने पर मानव मन की नानाविध समस्याएं सुलझ जाती हैं। इस अज्ञान, सशंय / अधूरे ज्ञान से विमुक्ति का माध्यम वैसे तो सर्वप्रथम हमारे शास्त्र हैं (व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिर्न हि सन्देहादलक्षणम् – व्याकरणमहाभाष्यम् ) परन्तु प्राध्यापक,शिक्षण संस्थान वो सीढियां हैं, जिस पर आरुढ़ होकर शास्त्र को गूढ़ता से समझा जा सकता है। इस दृष्टि से जनपद – जौनपुर के केराकत तहसील के अंतर्गत डॉ. राममनोहर लोहिया राजकीय महाविद्यालय की मुफ्तीगंज में स्थापना क्षेत्रीय लोगों के अज्ञान रुपी अनेक सशंयों का समाधान है। छात्र-छात्राएं किसी भी शिक्षण संस्थान की उर्वरा शक्ति हुआ करते हैं और प्राध्यापकों को उन्हें सिंचित करना होता है। ज्ञातव्य है कि महाविद्यालय में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से चयनित विद्वान प्राध्यापकों का एकमात्र उद्देश्य छात्र-छात्राओं को उनके लक्ष्य की ओर अभिमुख करना होता है। यद्यपि यहां कतिपय आधनिुनिक संसाधनों का अभाव भी कई बार दृष्टिगत होता है तथापि इसे विस्मृत बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए कि भारतवर्ष ज्ञानमना महामनस्वियों की तपोभूमि है, जहाँ गुरुकुल परम्परा को हृदयंगम करके ही शिक्षा को वैश्विक स्तर पर विराजमान किया गया है। यही वो तपस्थली है, जहां श्रीराम, तथागत बुद्ध जसै विद्यार्थियों ने सखु -समृद्धि का परित्याग कर दिया था। वैसे भी विद्यार्थियों के प्रति “विदुरनीति ” में कहा गया है-

सुखार्तिनः कुतो विद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेद्  विद्यऻ विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥
(जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से? और विद्यार्थी को सुख  कहाँ से ? सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या की आशा का परित्याग करना चाहिए और विद्यार्थी को सुख की)

कहना यहां यह है कि चमक-दमक वाले शिक्षण संस्थानों की अपेक्षा अपने डॉ. राममनोहर लोहिया राजकीय महाविद्यालय, मुफ्तीगंज का विशिष्ट महत्त्व है, जहां मूल कर्म के प्रति अर्थात ज्ञान की अलख जगाने के प्रति एकनिष्ठा है। अतः सभी जागरूक क्षेत्रवासियों, छात्र-छात्राओं से एकमात्र यही अपेक्षा है कि अपने क्षेत्र के इस गौरवपूर्ण महाविद्यालय के अहर्निश उत्थान के प्रति अपना-अपना सजग योगदान प्रदान करें, जिससे उत्तर प्रदेश शासन की ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के प्रसार का ध्येय पूर्ण हो सके।

सादर !

प्रो. धर्मेद्र कुमार द्विवेदी 
प्राचार्य

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